May 20, 2024

पीएम मोदी की अध्यक्षता में SCO Summit, भारत के लिए ये क्यों है इतना महत्वपूर्ण? चीन-पाक को क्या मिलेगा संदेश?

शंघाई शिखर सहयोग संगठन सम्मेलन आज से नई दिल्ली में आयोजित हो रहा है। इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। यह सम्मेलन पीएम मोदी की जून में अमेरिका यात्रा के बाद हो रहा है। खास बात यह है कि पहली बार भारत की मेजबानी में यह शिखर सम्मेलन वर्चुअल रूप से आयोजित किया जा रहा है। इससे पूरी दुनिया भारत की स्वतंत्र विदेश नीति के साथ Digital India की ताकत भी देखेगी। पीएम मोदी ने ही इस बार के शिखर सम्मेलन को वर्चुअल रूप से कराने का फैसला किया था। संयोगवश भारत एससीओ शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता भी ऐसे वक्त में संभाल रहा है, जब वह पहले से ही जी-20 की कमान संभाले हुए है। यानि भारत जी-20 का एक साल के लिए अध्यक्ष बना है।

PM मोदी और पुतिन पर नजर

इस सम्मेलन में पूरी दुनिया की निगाहें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन पर होंगी। राष्ट्रपति पुतिन वैगनर समूह के विद्रोह के बाद पहली बार किसी ग्लोबल समिट में शामिल होन रहे हैं। पीएम मोदी के साथ पुतिन भी सम्मेलन को संबोधित करेंगे। वैसे तो क्षेत्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और अफगानिस्तान जैसे मुद्दे इस शिखर सम्मेलन में चर्चा के अहम बिंदु हैं। मगर यूक्रेन युद्ध पर संभावित चर्चा होने की संभावना है। इसलिए पीएम मोदी और पुतिन की स्पीच पर दूरी दुनिया की निगाह है। इससे पहले पिछले साल सितंबर में उज्बेकिस्तान के ताशकंद में सितंबर में यह बैठक आयोजित हुए थी। जिसमें पीएम मोदी समेत, राष्ट्रपति पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ के साथ अन्य चारों देशों के टॉप लीडर मौजूद थे।

ये नेता होंगे शामिल

शंघाई शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी के निमंत्रण पर रूस के राष्ट्रपति पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ प्रमुख रूप से शामिल हो रहे हैं। अन्य चारों देशों के टॉप लीडर भी सम्मेलन में सहभागिता करेंगे। भारत, रूस, चीन, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान जैसे देश एससीओ शिखर सम्मेलन के स्थाई सदस्य हैं। ईरान को भी इस बार शिखर सम्मेलन का सदस्य बनाए जाने की संभावना है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने ईरान का नाम प्रस्तावित किया है। ईरान रूस का दोस्त है, जबकि अमेरिका से उसका 36 का आंकड़ा है।

वर्ष 2001 में हुई थी स्थापना

एससीओ शिखर की स्थापना वर्ष 2001 में रूस व चीन ने उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और तजाकिस्तान जैसे देशों को साथ लेकर की गई थी। यह महत्वपूर्ण क्षेत्रीय प्रभावशाली और आर्थिक सुरक्षा ब्लॉक है। इस अंतरराष्ट्रीय संगठन का भारत और पाकिस्तान को वर्ष 2017 में सदस्य बनाया गया। रूस के राष्ट्रपति पुतिन के प्रस्ताव पर भारत और चीन की सिफारिश पर पाकिस्तान को इसका सदस्य बनाया गया।

पीएम मोदी ने जब एससीओ को समझाया सम्मेलन का असली मकसद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के एससीओ का सदस्य बनने के बाद पहली बार वर्ष 2018 में इसे सिक्योर (SECURE) नाम दिया। प्रधानमंत्री ने इसका अर्थ S-से सुरक्षा,  E-से इकोनॉमिकल डेवलपमेंट, C- से कनेक्टिविटी, U- से यूनिटी (एकता), R- संप्रभुता और Respect for territorial integrity यानि क्षेत्रीय अखंडता के लिए सम्मान, और E-से एनवायरमेंट यानि पर्यावरण संरक्षण। इस प्रकार पीएम मोदी ने एससीओ शिखर सम्मेलन का स्वरूप ही बदल दिया। इससे रूस के राष्ट्रपति पुतिन समेत उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान और किर्गिस्तान जैसे देश भी पीएम मोदी के कायल हो गए।

यूक्रेन युद्ध पर क्या होगी चर्चा

यह बैठक ऐसे वक्त में हो रही है। जब यूक्रेन युद्ध के 16 महीने बीत चुके हैं और अभी तक भारत ने रूस के आक्रमण की निंदा नहीं की है। साथ ही यूक्रेन युद्ध को शांति और वार्तालाप से सुलझाने का पक्षधर रहा है। इसके बावजूद भारत की स्थिति न तो रूसी राष्ट्रपति पुतिन व यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की नजर में कमजोर हुई है और न ही अमेरिका समेत पश्चिमी व यूरोपीय देशों की निगाह में। हाल ही में पीएम मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा से भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और ताकतवर हुई है।

यहां भी पीएम मोदी ने यूक्रेन युद्ध को लेकर अपने पूर्व के रुख को कायम रखा था। इससे भारत ने अब तक तटस्थ रहकर चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मनों को हैरत में डाल दिया है। पूरी दुनिया भारत और पीएम मोदी की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रही है। यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर अब तक भारत ने तो रूस से अपना पारंपरिक रिश्ता खराब किया और न ही पश्चिमी देशों के दबाव में आया है। यह बात दुश्मन देशों को खल रही है।

पुतिन के पास शक्ति दिखाने का मौका

यूक्रेन युद्ध के चलते दुनिया से अलग-थलग पड़े रूस और राष्ट्रपति पुतिन के लिए एससीओ शिखर सम्मेलन शक्ति प्रदर्शन का एक मौका भी लेकर आया है। इस अंतरराष्ट्रीय मंच से पुतिन अपनी ताकत दिखा सकते हैं। अगर ईरान को भी वह एससीओ शिखर सम्मेलन का सदस्य बनाने में कामयाब रहे तो यह पुतिन की बड़ी जीत होगी। यूक्रेन युद्ध में ईरान के ड्रोन और अत्याधुनिक हथियार कीव में कहर बरपा रहे हैं। खास बात है कि ईरान और अमेरिका भी दुश्मनी है। जबकि ईरान और रूस का बेहद करीबी रिश्ता है। एससीओ के अन्य सदस्य देश भी रूस के मित्र राष्ट्र हैं।

भारत-चीन विवाद समेत ये मुद्दे होंगे अहम

एससीओ शिखर सम्मेलन में यूरेशियाई महाद्वीप का विकास, आर्थिक सुरक्षा और सहयोग, वैश्विक सुरक्षा, वैश्विक विकास और तकनीकी साझा करने समेत जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा होने की संभावना है। इसके अलावा भारत-चीन सीमा विवाद और तीन वर्षों से चल रहे तनाव के मसले पर पुतिन शी जिनपिंग से बात कर सकते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इस वक्त भारत-चीन में तनाव बने रहना रूस के हित में नहीं होगा। वह भी ऐसे वक्त में जब पूरी दुनिया रूस के खिलाफ खड़ी हो और दूसरी तरफ उसके भारत व चीन जैसे दो दोस्त आपस में भिड़ रहे हों। इसलिए पुतिन इस तनाव को कम करने की पहल कर सकते हैं।

भारत के लिए एससीओ सम्मेलन क्यों है महत्वपूर्ण

भारत के लिए इस बार का सम्मेलन बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। यह संयोग ही है कि इस वक्त भारत जी-20 की भी अध्यक्षता कर रहा है। जो कि बड़ा अंतरराष्ट्रीय संगठन है। एससीओ भी यूरेशियाई देशों का अंतरराष्ट्रीय संगठन है। ऐसे में दो-दो संगठनों की एक साथ अध्यक्षता से भारत के पास अपनी ग्लोबल लीडरशिप प्रदर्शित करने का शानदार मौका है। इसके अलावा जिस तरह से यूक्रेन युद्ध पर अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को कायम रखते हुए भारत ने रूस-यूक्रेन समेत अमेरिका और यूरोपीय देशों को साथ रखा है, वैसे ही एशियाई देशों में अपनी छवि और अधिक मजबूत करने का अवसर है।

साथ ही चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मनों को अपनी ताकत का एहसास कराने का वक्त भी है। वर्चुअल रूप से इस शिखर सम्मेलन को आयोजित करके भारत अपनी डिजिटल इंडिया की ताकत भी दुनिया को दिखा रहा है। भारत के लिए एससीओ इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि यह ऐसा देश है जो किसी के दबाव में काम नहीं करता और अपना रास्ता अपनी नीति खुद तय करता है। साथ ही यह भी दर्शाना है कि भारत के पास अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व की अद्भुद क्षमता है।


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