May 17, 2024

जब 6 कुंटल लकड़ी की आग से भी सोना नहीं पिघला तो केदारनाथ में कैसे ?

गजेन्द्र रावत

पिछले कुछ दिनों से कुछ दिनों से है केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह में लगे सोने का पीतल में बदलने का मुद्दा पूरी देश दुनिया में छाया हुआ है। मंदिर समिति इस पर जवाब देकर फंसती जा रही है ।जिस मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय उर्फ भट्ट और उनके तमाम लोग कल तक केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह में सोने की परत लगाने की बात करते थे वहीं अब लिखित रूप में बता रहे हैं कि वहां पर 10 कुंटल तांबा भी लगाया गया है।

10 कुंटल तांबे की बात पहली बार सामने आ रही है यह तब आई है जब संतोष त्रिवेदी नाम के एक पुरोहित ने गंभीर आरोप लगाया कि सवा सौ करोड़ रुपए का सोना पीतल में बदल रहा है क्या सोना वास्तव में पीतल में बदलता है और सोना पिघलता भी है।

बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के सोना से पीतल बनने की और सोने की पिघलने की कहानी के बीच मुझे अपने घर का एक पुराना वाक्य याद आया
1986 में जब मैं कक्षा 6 में प्रवेश कर प्रताप इंटर कॉलेज टिहरी में पढ़ता था तो मेरी दादी सावित्री देवी का देहांत हो गया । उससे पहले की मेरी प्राथमिक शिक्षा दयारा बाग में हुई। तीन चार दिन पहले ही मेरे पिताजी मेरी दादी की स्थिति को समझते हुए देहरादून से टिहरी आ गए थे पिताजी उद्यान विभाग में नौकरी करते थे। उस जमाने में न तो टेलीफोन था ना मोबाइल हमारे द्वारा भेजे गए ष्तारष् से वे घर आए नई पीढ़ी के लोगो को पता भी नही होगा कि तार किसे कहते थे । तार का अर्थ तत्काल चिट्ठी होता था मतलब अंतर्देशीय पत्र या पोस्ट कार्ड की कीमत से ज्यादा खर्च वाली स्पीड सर्विस । दादी की मृत्यु के बाद घर में रोना पीटना हुआ रिश्तेदार आए गांव के लोग आए और दादी की अंतिम क्रिया हमारे गांव कंडल से जाकर भागीरथी भिलंगना के संगम गणेश प्रयाग टिहरी में संपन्न हुई।

अंतिम संस्कार के अगले दिन मेरी बहनो मां घर के लोगों को याद आया कि दादी के कान में सोने के जो दोनों कुंडल जिन्हें उस जमाने में मुरके कहा जाता था उन्हें घर के लोगों ने उतारा नहीं था।

प्रक्रिया यह होती है कि इंसान के मौत के बाद उसके मुंह और आंख में सोने का अंश रूई में भरकर रख दिया जाता है जब घर में है चर्चा हुई कि सोना नहीं निकाल पाए और अंतिम संस्कार भी कर दिया तो अब क्या हो सकता है इस बीच कुछ रिश्तेदार पास पड़ोस और गांव के ही जो लोग उस वक्त घर में मौजूद थे उन्होंने सुझाव दिया कि उसी स्थान पर जाकर यह पता करना चाहिए कि क्या सोने के मुरके वही है या जल गए हैं।

फिर मेरे बड़े भाई विजेंद्र सिंह रावत और ताऊ जी के बेटे गोविंद सिंह रावत को दोबारा गणेश प्रयाग भेजा गया दादी की मृत्य पर यही दोनो कफन और क्रिया कर्म का सामान खरीदने कंडल से पुरानी टिहरी बाजार भेजे गए थे। घर के लोगों को कोई उम्मीद नहीं थी कि अब वहां सोना वापस मिल सकता है क्योंकि सभी मान रहे थे कि सोना अब तक चिता की भीषण आग से पिघल चुका होगा कुछ घंटे बाद जब भाई विजेंद्र सिंह रावत और गोविंद सिंह रावत गोविंदा भाई घर लौटे तो उनके हाथ में दादी के दोनों कुंडल एकदम सही सलामत थे।

उनमें से सिर्फ वही लाल दाने जले थे जो सोने के नहीं थे दादी की मौत के बाद उनके द्वारा छोड़े गए वह सोने के कुंडल अपने आप में पूरे परिवार में उत्साह फैलाने वाले थे।

मां पिताजी ने उसी वक्त तय किया कि यह दोनों कुंडल दोनों बहनों को दे दिए जाएं और वही किया गया इस घटना से स्पष्ट हो जाता है कि लगभग 6 कुंटल की चिता की भीषण आग में जलने के बावजूद जब सोने के कुंडल नहीं पिघले तो आखिरकार केदारनाथ मंदिर के भीतर गर्भ ग्रह में लगा सोना कैसे पिघल सकता है।

क्या वास्तव में वहां सोना लगाया गया था पीतल लगाया गया था और गंभीर बात तांबा कहां से आ गया इन तमाम सवालों के जवाब आने बाकी है।

बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष और उनके कार्यकारी अधिकारी अभी तक संतोष त्रिवेदी से लेकर किसी के ऊपर मुकदमा नहीं किया है जिससे पूरे देश दुनिया में उत्तराखंड की छवि पर बट्टा लग रहा है और बाबा केदार के करोड़ों भक्त अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं उम्मीद है कि अजेंद्र अजय और उनके लोग इस बात को अभी भी स्पष्ट करेंगे कि तांबा लगाने की नई कहानी कब से शुरू की गई और क्यों अगर बाबा केदार के गर्भ ग्रह में 10 कुंटल तांबा लगाया गया है तो तब सोना क्यों बताया गया था।

(वरिष्ठ पत्रकार गजेन्द्र रावत के फेसबुक वाल से साभार)


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