May 3, 2024

मायावती का ये फैसला बढ़ाएगा सपा और कांग्रेस की मुश्किल, BJP के लिए भी होगा चैलेंज

आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के पहले एक ओर जहां गठबंधन बनने की कवायद शुरू हो गई है और कई दल एक मंच पर साथ आने को तैयार हैं तो वहीं उत्तर प्रदेश में स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत है.  बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के खिलाफ बिगुल फूंक रखा है. उधर सपा मुखिया अखिलेश यादव भी कई मौकों पर संकेत दे चुके हैं अगर कांग्रेस के साथ गठबंधन हुआ तो उसे राज्य में कुछ सीटें ही दी जाएंगी. उनका दावा है कि राज्य में कांग्रेस का जनाधार सिमट चुका है. अब यह देखने वाली बात होगी भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ बनने वाले गठबंधन में कांग्रेस कितनी कुर्बानी को तैयार होती है. हालांकि ऐसा नहीं है कि यूपी में सिर्फ सपा और कांग्रेस के गठबंधन से ही बात बन जाएगी.

साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के परिणाम इस बात की गवाही देते हैं. राज्य में बिना बसपा के कोई गठबंधन अपना पूर्ण आकार लेता नहीं दिख रहा है. यह बात सच है बीते तीन बार से बसपा को विधानसभा चुनाव में साल 2014 के बाद से लोकसभा चुनावों में भी मुंह की खानी पड़ी है लेकिन यह भी स्पष्ट है कि पार्टी का अपना वोट बैंक है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जब बसपा के खाते में सिर्फ शून्य आया था, तब भी उसे 19.77 फीसदी वोट मिले थे. वहीं साल 2019 में जब राष्ट्रीय लोकदल, सपा के साथ बसपा ने गठबंधन किए तो सिर्फ 19.43 फीसदी मतों पर ही पार्टी के 10 सांसद जीत गए.

दावा किया जाता है कि राज्य में 20 फीसदी आबादी दलितों की है. वहीं 18 फीसदी मुस्लिम हैं. ऐसा माना जाता है कि बसपा के दलित वोटबैंक में बीजेपी ने सेंध लगा दी है वहीं मुस्लिमों के वोट पर सपा और बसपा का हिस्सा साझा है. ऐसे में यह स्पष्ट है कि बिना बसपा के राज्य में कोई गठबंधन कारगर नहीं हो सकता है.

इन सबके बीच मायावती के कुछ फैसलों से यह संकेत मिल रहे हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर किसी संभावित गठबंधन का वह और उनकी पार्टी हिस्सा नहीं होगी. चाहे नई संसद के उद्घाटन का फैसला हो या हाल ही में विधान परिषद की सीटों पर हुए उपचुनाव को लेकर सपा पर आरोप लगाने की बात, दोनों ही मुद्दों पर ही बसपा की प्रतिक्रिया से यह संकेत मिल रहे हैं कि वह गठबंधन में शामिल होने के लिए इच्छुक नहीं है


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