May 17, 2024

मजार तोड़ने से रुकेगा डेमोग्राफिक चेंज !

फोटोः फेसबुक

गजेन्द्र रावत

पिछले दिनों अपने घर के वास वेशन के लिए एक शीशा बनवाने के लिए जब धर्मपुर मैं उत्तराखंड के ठेठ पहाड़ी दुकानदार के पास गया तो उसने बताया कि कुछ दिन बाद आना कुछ दिन बाद गया तो उसने कहा ईद के बाद आना। मैंने सोचा कि रमजान का महीना चल रहा है, हो सकता है कि मुसलमानों ने बहुत अधिक आर्डर हमारे पहाड़ी भाई को दिए होंगे और वह उनका काम करने में व्यस्त है। ईद के बाद जब मैं उनके पास गया तो उन्होंने कहा कि अभी उनकी ईद खत्म ही नहीं हुई है। मुझे फिर लगा कि शायद मुसलमानों के मकानों में ज्यादा शीशे के काम हो रहे होंगे, इसलिए अभी मेरे वास वेशन का शीशा नहीं कटा।

10-12 दिन गुजरने के बाद जब मैंने उन्हें कहा कि आखिरकार एक शीशा काटने में इतनी क्या दिक्कत आ गई? तो जो बात दुकानदार ने मुझे बताएं मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। दुकानदार ने बताया कि उसकी दुकान पर काम करने वाले पांचों के पांचो कारीगर मुसलमान है। पहले वे रमजान के दौरान जल्दी घर चले जाते थे तो फिर ईद आई तो उन्होंने कुछ दिन की छुट्टी कर ली, इस कारण काम नहीं हो पाया।

दुकानदार की बात सुनकर मुझे लगा कि क्या वास्तव में वही सब कुछ धरातल पर हो रहा है, जो फेसबुक और अखबारों में चल रहा है कि डेमोग्राफी बदल रही है। धर्म विशेष के लोग उत्तराखंड में घुसपैठ कर रहे हैं? मजारे बनाकर लैंड जिहाद कर रहे हैं? अपने घर के एक वास बेसन के शीशे को बनाने मात्र के एक उदाहरण के बाद जब मैंने थोड़ा और अध्ययन किया तो मुझे ध्यान आया कि 2 साल पहले जब मैं गंगी गांव जा रहा था तो उससे ठीक पहले पढ़ने वाले गांव के छोटे से बाजार में मैंने नफीस हेयर ड्रेसर अब्दुल वेल्डिंग वाले को और अकील प्लंबर के बोर्ड भी लगे देखे।

डेमोग्राफी बदलने की इस विषय पर जब और अध्ययन किया तो मैंने पाया कि आज उत्तराखंड में एक भी ऐसा काम नहीं हो रहा है जिसमें मुसलमान मजदूर मिस्त्री प्लंबर, कारपेंटर, प्रिंटर, बिजली वाला, पानी वाला, सब्जी वाला, कपड़े वाला, पंचर वाला, बाल काटने वाला, कपड़े सिलने वाला दर्जी, बूटिक चलाने वाले लोग, खाने के होटल बर्तनों की दुकान है कोई भी ऐसा सेक्टर नहीं बचा हुआ है जहां मुसलमानों के बिना काम हो रहा हो।

यदि किसी क्षेत्र में दूसरा व्यक्ति ठेकेदारी कर रहा है तो उसके पास काम करने वाले मजदूर मिस्त्री प्लंबर अधिकांश मुसलमान है। नक्काशी की जहां बात होती है तो ढूंढ ढूंढ कर मुसलमान लाने पड़ते हैं। फर्नीचर बनाने या उन्हें तराशने की जब बात आती है तो वहां अब्दुल ही काम कर रहा है। गाड़ी का पंचर लगाने से लेकर गाड़ी की धुलाई एहसान और रहमान कर रहे हैं।

दूध सप्लाई से लेकर सब्जी सप्लाई ,मीट मुर्गा मछली एक भी क्षेत्र ऐसा नहीं जिसको देखकर हम कह सकते हैं कि पिछले 23 वर्षों में उत्तराखंड के व्यक्ति ने अपनी सरकार से कुछ ऐसा सीखा हो कि वह इस काम को पकड़ लेता।
हां, सरकार आज यदि सिर्फ पॉलीटिकल माइलेज लेने के लिए इस प्रकार की बयान बाजी कर रही है, लैंड जिहाद की बात कर रही है तो निश्चित रूप से इस लैंड जिहाद में मुसलमानों का कितना प्रतिशत है और दूसरे धर्मों का कितना इस पर भी सरकारी आंकड़े आना बेहद जरूरी है। कहीं ऐसा ना हो कि 100/ 200 मुसलमानों के चक्कर में दूसरे धर्म के हजारों लोग सरकारी जमीन कब्जाए बैठे हो।

उत्तराखंड में पुरोला कांड और उसके समाधान के बाद भी डेमोग्राफिक चेंज, मस्जिद मजार, धर्म विशेष, कॉमन सिविल कोड जैसे शब्द अखबारों से लेकर सोशल मीडिया की सुर्खियां बना हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि यह चुनाव की तैयारी का एक पार्ट है।

हाईकोर्ट के आदेश पर मंदिर मस्जिद मजार और गुरुद्वारे तोड़े जा रहे हैं, लेकिन मीडिया की सुर्खियां सिर्फ मजार है। यह क्यों करवाया जा रहा है? इसे समझने के लिए ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है। मजार तोड़ने की वीडियो बड़ी संख्या में प्रसारित हो रहे हैं और इस पर खूब बयान बाजी भी हो रही है।

इस नए घटनाक्रम के बीच कोरोना का वह काल भी याद आ रहा है, जब वर्तमान में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट वह बयान आया था, जब उन्होंने कहा था कि उत्तराखंड के लोगों को नजीबाबाद की सब्जी नहीं खानी चाहिए। महेंद्र भट्ट ने यह भी कहा था कि जब वह बाल कटवाने जाते हैं तो उन्हें डर लगता है कि बाल काटने वाला नाई उनकी गर्दन ना उड़ा दे। महेंद्र भट्ट की वह बयान उस वक्त तबलीगी जमात के थूकने और दूसरों का भोजन झूठा करने पूर्णा फैलाने को लेकर चर्चा में आया था।

महेंद्र भट्ट के उस बयान के बाद काफी दिनों तक उत्तराखंड में सब्जी बेचने वालों ने अपने ठेले के ऊपर झंडे लगा रखे थे। कुछ लोग कुछ सब्जी वाले बाकायदा हिंदू सब्जीवाला चिल्लाकर अपनी सब्जी बेच रहा था। कुछ नाईयो ने फोन पर दूसरों को बताया कि वह हिंदू है उसी से बाल कटवाए जाए। कोरॉना काल के दौरान यह वास्तव में बेहद रोमांचक रहा।

इस बीच पौड़ी के पूर्व विधायक और भाजपा के नगर पालिका अध्यक्ष यशपाल बेनाम की बेटी की शादी का कार्ड भी खूब सुर्खियां बटोरी, जिसमें बेनाम ने अपनी बेटी का विवाह एक मुसलमान युवक के साथ तय किया। तमाम हो हल्ले के बाद शादी का कार्यक्रम तो पोस्टपौंड बताया गया, किंतु बताया जा रहा है कि बेनाम की बेटी की कोर्ट मैरिज पहले ही हो चुकी है। उत्तराखंड सरकार का जबरन धर्मांतरण कानून का बदलाव आने वाले वक्त में कितना कारगर होगा कौमन सिविल कोड से क्या होगा सब भविष्य के गर्भ के है।

पुरोला में एक हिंदू और एक मुसलमान लड़के के बराबर अपराध के बाद जो माहौल बनाया गया वह उत्तराखंड जैसे शांत राज्य के लिए कतई सही नही माना जा सकता। लैंड और लव जेहाद के माध्यम से राजनैतिक रोटी सेंकने वालों को यदि डेमीग्राफिक चेंज को रोकना है तो अपने बच्चों को अब्दुल अकबर शाहिद शकील अहसान अकील मुसरफ शोएब की तरह रोजी रोटी वाला हर काम सिखाना होगा आत्मनिर्भर बनाना होगा ताकि अगली बार मुझे रहमान और अहसान के चक्कर न काटने पड़े। और हां मतदाता सूची का रिकार्ड अपने आप के बहुत कुछ कह रहा है।


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