भारत के पहले लोकपाल बने जस्टिस पिनाकी घोष, राष्ट्रपति ने दिलाई शपथ
राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष को शनिवार को लोकपाल प्रमुख के रूप में शपथ दिलाई। आधिकारिक बयान में कहा गया, ”राष्ट्रपति भवन में एक समारोह में शपथ दिलाई गई। उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति घोष को 19 मार्च को देश के पहले लोकपाल के रूप में नियुक्त किया गया था।
पहले लोकपाल जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष के बारे में खास बातें-
जस्टिस पीसी घोष को मानवाधिकार कानूनों पर उनकी बेहतरीन समझ और विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है। जस्टिस घोष उच्चतम न्यायालय के जज रह चुके हैं। वह आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भी रहे हैं। वह अपने दिए गए फैसलों में मानवाधिकारों की रक्षा की बात बार-बार करते थे। वह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य भी हैं।
शशिकला को सजा सुना कर चर्चा में आए थे जस्टिस घोष
जस्टिस घोष ने अपने सुप्रीम कोर्ट कार्यकाल के दौरान कई अहम फैसले दिए। वह तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता की करीबी शशिकला को आय से अधिक संपत्ति मामले में सजा सुना कर देशभर में चर्चा में आए थे। उन्होंने शशिकला समेत बाकी आरोपियों को दोषी करार देने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। हालांकि फैसला सुनाए जाने से पहले तक जयललिता की मौत हो चुकी थी।
पांच पीढ़ी से कानूनी पेशे में है परिवार
जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष कोलकाता के रहने वाले हैं। उनकी पांच पीढ़ी कानूनी पेशे से जुड़े हुई हैं। घोष यहां के जोरासंको के प्रतिष्ठित दीवान बरनसाई घोष परिवार से आते हैं। घोष के पिता जस्टिस शंभू चंद्र घोष कोलकाता हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे। साल 1867 में सदर दीवानी अदालत के पहले भारतीय चीफ जज बनने वाले हर चंद्र घोष भी इसी परिवार से थे।
जस्टिस घोष के अहम फैसले
– अयोध्या में विवादित ढांचा विध्वंस मामले में जस्टिस रोहिंग्टन के साथ पीठ में रहते हुए निचली अदालत को भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह और बाकी नेताओं पर आपराधिक साजिश की धारा के तहत आरोप तय करने का आदेश दिया था।
– जस्टिस घोष, चीफ जस्टिस एच एल दत्तू और जस्टिस कलीफुल्ला के साथ उस पीठ के भी सदस्य थे, जिसने तय किया था कि सीबीआई की ओर से दर्ज मुकदमे में दोषी ठहराए गए राजीव गांधी के दोषियों की सजा माफी का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है।
– जस्टिस राधाकृष्णन के साथ पीठ में रहते हुए उन्होंने जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ जैसी परंपराओं को पशुओं के प्रति क्रूरता मानते हुए उन पर रोक लगाई।
– अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन के फैसले को पलटते हुए वहां पहले की स्थिति को बहाल करने वाली संविधान पीठ में भी शामिल रहे। सरकारी विज्ञापनों के लिए दिशा निर्देश तय करने वाली बेंच के भी वो सदस्य थे।