May 15, 2024

समान नागरिक संहिता, खोदा पहाड़ निकाली चुहिया!

देहरादून। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक उत्तराखंड 2024 बुधवार को विधानसभा में पारित कर दिया गया। विधेयक पर दो दिनों तक लंबी चर्चा हुई। सत्ता और विपक्ष के सदस्यों ने विधेयक के प्रावधानों को लेकर अपने-अपने सुझाव दिए। सत्ता पक्ष के लोग इसको ऐतिहासिक बिल करार दे रहे हैं। वहीं विपक्षी दल इस पर कई तरह के सवाल उठा रहे हैं। प्रतिपक्ष के उपनेता और कांग्रेसी भुवन कापड़ी ने कट, कापी, पेस्ट वाला बिल बताया। इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी यूसीसी बिल पास होने के बाद खूब चर्चा हो रही है।

हरीश रावत ने गिनाई खामियां

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने यूसीसी बिल पर सवाल उठाते हुए इसकी खामियां गिनाई हैं। हरीश रावत ने कहा उत्तराखंड कॉमन सिविल कोड बिल पारित हो गया है, इसको आवश्यक संवैधानिक अनुमति भी मिल जाएगी। एक लक्ष्य और एक उपलब्धि साफ है। लक्ष्य है राज्य में उपलब्ध विहीन सरकार को लोकसभा चुनाव में जनता के बीच जाने और अपनी पीठ ठोकने का एक मुद्दा मिल गया है।
हरदा सवाल उठाते हुए कहते हैं कि उत्तराखंड को क्या मिला? क्या इस विधेयक के पारित होने से लड़के-लड़कियों के सामने जो बेरोजगारी का प्रश्न है उसका कुछ समाधान निकलेगा? निरंतर बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार क्या नियंत्रित होगा? क्या आटा, दाल, चीनी, सब्जी कुछ सस्ती होंगी? महिलाओं और दलित वर्ग पर हो रहे अत्याचार क्या रूकेंगे?

जनजातीय महिलाओं को समानता के अधिकार से रखा वंचित

समान नागरिक संहिता पर नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य कहते है कि यह कानून महिलाओं को लैंगिक समानता देने के उद्देश्य से लाया गया विधेयक है। वे सवाल उठाते है कि यदि ऐसा है तो प्रदेश सरकार ने इस समानता के अधिकार से उत्तराखण्ड की अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को क्यों दूर रख रहे हैं? क्या प्रदेश की 4 प्रतिशत जनसंख्या से संबंध रखने वाली महिलाऐं धामी सरकार कि कथित लैंगिक समानता की हकदार नहीं थीं? मेरा तो यह मानना है कि, हमारे प्रदेश की अनुसूचित जनजाति से संबध रखने वाली महिलाऐं बहुत ही प्रगतिशील हैं। उन्होंने हर क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़े हैं। फिर उनके साथ यह भेद-भाव क्यों किया गया? या सरकार में सम्मिलित कुछ महत्वपूर्ण लोगों की विधानसभाओं में चुनाव के राजनीतिक समीकरण को बिगड़ने के डर से आपने इन महिलाओं को छोड़ दिया? जब प्रदेश की 4 प्रतिशत जनता पर यह कानून लागू ही नहीं होगा तो फिर क्यों इस समान नागरिक संहिता कहा जा रहा है?

कट कॉपी पेस्ट का विधेयक

कांग्रेस नेता और सदन में उपेनता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी कहते हैं कि सरकार को यूसीसी बिल कट कॉपी पेस्ट के सिवा कुछ नहीं है। उसमें भी सरकार को कट, कॉपी पेस्ट करने में 20 महीने का समय लग गया है। बिल में कहा गया है कि शादी रजिस्टर्ड अनिवार्य होगा। जबकि देश में 2006 से शादी रजिस्टर्ड हो रही है। संसद ये बिल 2005 में पास हो गया था। तीन तलाक एक समस्या थी पहले ही खत्म हो गया। 1978 मे लड़कियों के लिए शादी की उम्र 18 साल और लड़कों के लिए 21 साल कर दी गई तो इस यूसीसी में विशेष क्या आया? पैतृक सम्पति में लड़कियों को अधिकार देने की बात हो रही है। लड़कियों 2005 से ही पैतृक सम्पति पर अधिकार है। उन्होंने कहा कि भारत परम्पराओं का देश है, संस्कृति का देश धार्मिक मान्यताओं का देश है। लिव इन रिलेशनशि पर पर वे कहते हैं कि ये युवाओं की गोपनीयता भंग करने की कोशिश है जबकि भारत का संविधान नागरिकों को स्वतंत्रता का अधिकार देता है।

यूसीसी ने याद दिला दी थ्री इडियट्स

वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला कहते है कि यूसीसी ने भी थ्री इडियट फिल्म की याद दिला दी कि टीचर आमिर खान से पूछता है कि भई, आखिर तुम कहना क्या चाहते हो? वे कहते हैं कि यूसीसी विधेयक में प्रावधान के मुताबिक, बेटा और बेटी को संपत्ति में समान अधिकार देने और लिव इन रिलेशनशिप में पैदा होने वाली संतान को भी संपत्ति का हकदार माना गया है। अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों पर यूसीसी लागू नहीं होगा। सदन में विधेयक पेश करने के बाद सीएम ने कहा कि यूसीसी में विवाह की धार्मिक मान्यताओं, रीति-रिवाज, खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर कोई असर नहीं होगा। तो भाई जब कूुछ नहीं बदला तो दो साल तक कसरत क्यों की? यूसीसी को हव्वा क्यों बनाया?

निजी संबंधों में जबरन सरकार की घुसपैठ की कोशिश

यूसीसी पर टिप्पणी करते हुए भाकपा माले के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि समान नागरिक संहिता के नाम से प्रस्तुत विधेयक एक निरर्थक कवायद का नमूना है, जिसमें जो एक संहिता तो है, लेकिन नागरिकों के लिए किसी तरह की समानता नहीं लाती है. यह विधेयक और इसके जरिये की जाने वाली पूरी कोशिश, बालिग लोगों के निजी संबंधों में जबरन सरकार और उसकी दक्षिणपंथी उत्पाती समूह द्वारा घुसपैठ का इंतजाम है। विवाह, तलाक, उत्तराधिकार के लिए पहले से कानून मौजूद हैं और उसके लिए एक नए कानून के पुलिंदे की कोई आवश्यकता नहीं थी।


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