वैश्विक मंच पर भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के कार्यों हुई सराहना
देहरादूनः वैश्विक चुनौतियों के समाधान की प्रतिबद्धता को लेकर भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद की अंतर्राष्ट्रीय पर प्रशंसा की गई। दरअसल नेपाल के एकीकृत पर्वत विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (आईसीआईएमओडी) और भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) के मध्य 2015 में ‘रेड़ हिमालयः हिमालय में रेड़ के क्रियान्वयन में अनुभव के विकास और उपयोग’ पर एक कार्यक्रम शुरू हुआ। यह परियोजन हाल के दिनों मे सम्पन्न हुई। आईसीआईएमओडी के महानिदेशक डेविड मौलदीन ने परियोजन की सफलता की सराहना की और इसके ठोस क्रियान्वयन के लिए भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के महानिदेशक डा. सुरेश गैरोला की तरीफ की। इस मौकेे पर उन्होंने कहा कि वनों की कटाई और जंगल की कटाई की समस्या को दूर करने के लिए पूरे क्षेत्र में एक ठोस प्रयास की आवश्यकता है और आईसीआईएमओडी हिंदू कुश हिमालयी क्षेत्र के वानिकी क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार करने के लिए भारतीय वानिकी अनुसंधान के साथ इस तरह की साझेदारी हेतु इच्छुक है।
इस साझेदारी के माध्यम से भारतीय वानिकी अनुसंधान केवल भारत में ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय स्तर पर भी रेड़ उपकरण के विकास में उल्लेखनीय योगदान देने में सक्षम हुआ है। परिषद ने राष्ट्रीय रेड़ कार्यनीति की तैयारी में भारत सरकार की सहायता करने में मुख्य भूमिका निभाई है। यह कार्यनीति देश में वानिकी क्षेत्र की क्षमता को बेहतर ढंग से तलाश कर रेड़ को लागू करने की भारत सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
वहीं डा. सुरेश गैरोला ने कहा कि भारत के लिए राष्ट्रीय रेड़ कार्यनीतियां पूर्व से ही जारी की जा चुकी हैं। वनों की कटाई और वन क्षरण से उत्सर्जन को कम करना, वन कार्बन स्टाॅक का संरक्षण, वनों का सतत प्रबंधन और विकासशील देशों में वन कार्बन स्टाॅक में वृद्धि का उद्देश्य वन संरक्षण को प्रोत्साहित करना है। डा. गैरोला ने कहा कि स्वस्थ पर्यावरण, स्थानीय समुदायों की सतत् आजीविका तथा जैव विविधता के संरक्षण के लिए वनों की सलामती आवश्यक है। रेड़ भारत जैसे विकासशील देशों में अत्यधिक ध्यान दिया जा रहा है जहां स्थानीय समुदाय, वनवासी जनजातियां उनकी आजीविका हेतु वनों पर ज्यादातर निर्भर है। यह कार्यनीति स्थानीय स्तर सामुदायिक वनपाल के रूप में युवा संवर्गों के सशक्तिकरण का समर्थन करेगी।