दायित्व तो बांटे लेकिन थराली सीट जिताने वाले को भूल गये सरकार !
देहरादूनः लोकसभा चुनाव नजदीक है। प्रदेश की भाजपा सरकार और संगठन चैकन्ने हैं। लोकसभा चुनाव का विगुल कभी भी बज सकता है। लिहाजा चुनावी वार रूम सजने लगे हैं। सरकार भी अपने जंत-जोड़ में लगी है तो उधर भाजपा का प्रदेश संगठन अपनी गुत्थियां सुलझाने और चुनावी रणनीतियां बनाने में जुटा है। इसी रणनीति के तहत 51 लोगों को दायित्वधारी बनाया गया। टीएसआर ने सोच विचार दायिव्त बांटे लेकिन साहब इस चुनावी उधेड़बुन में चूक कर गये। दरअसल टीएसआर की दायित्व बांटने की मंशा तो ठीक थी लेकिन साहब उन लोगों को इस बार भी बुला बैठे जिन्होंने संकट के समय साथ दिया।
थराली उपचुनाव के दौरान मुख्यमंत्री की साख दांव पर थी। किसी भी तरह सीट जीत कर अमित शाह को यह संदेश दिलाना था कि मुख्यमंत्री की बाजूओं में दम है। क्योंकि इससे पहले टीएसआर पर कमजोर सीएम होने की तोहमत उनके ही अपने लगा चुके थे। मुख्यमंत्री के सामने मुन्नी देवी को विधानसभा तक पहुंचाने की चुनौती थी वो तब जब जनता का पूरा समर्थन कांग्रेस के प्रत्याशी को था।
ऐसी स्थिति में टीएसआर और उनके चाण-बाण ने खांटी नेता सुदर्शन सिंह कठैत का समर्थन प्राप्त किया। बजुर्ग कठैत ने टीएसआर की मुश्किलों को साझा कर जीत का आश्वासन दिया। कठैत ने उस वक्त टीएसआर के लिए अपने स्वास्थ्य की चिंता किये बिना मरणासन्न भाजपा को क्षेत्र में जिंदा कर डाला। और जब चुनाव के नतीजे आये तो घाट क्षेत्र से ही भाजपा को भारी बहुमत मिला और टीएसआर की मुश्किलें जीत के साथ खत्म हुई।
थराली जीत के बाद टीएसआर से क्षेत्र के लोगों को भारी उम्मीदें थी। लेकिन हुआ वहीं जो अक्सर राजनीति में होता रहा है। टीएसआर ने थराली सीट जिताने में मदद करने वाले को ही भुला दिया। टीएसआर के लिए अपने स्वास्थ्य और आउट आॅफ वे जाने के लिए सुदर्शन सिंह कठैत को स्वयं कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्हें अपनों का ही कोपभाजन होना पड़ा लेकिन टीएसआर को दिये साथ को उन्होेने मजबूती से निभाया। बुर्जुग नेता सुदर्शन सिंह कठैत के समर्थकों का कहना है कि मुख्यमंत्री को कठैत जी ने पूरा सपोर्ट किया लेकिन मुख्यमंत्री ने उन्हें भूला दिया है। कठैत समर्थकों का कहना कि मुख्यमंत्री अनजान चेहरो को दायित्व बांट रहे हैं जबकि सीएम को बुर्जुग नेता का उचित सम्मान करना था और क्षेत्र की जनता को सकारात्मक संदेश देना था।