May 3, 2024

Exclusive: 2013 के शासनादेश पर कुंडली मार के क्यों बैठा है शिक्षा विभाग, सरकार घाटे में तो किसे पहुंच रहा फायदा?

देहरादून। उत्तराखंड के शिक्षा विभाग में सब कुछ ठीक नहीं है। एक ओर विद्यालयी शिक्षा मंत्री अरविंद पांड़े बड़ी-बड़ी हांकते हैं तो दूसरी ओर उनके अधिकारी कुछ और ही खेल खेल रहे हैं। शिक्षा विभाग के इस कारनामे से चंद लोगों को फायदा पहुंच रहा है लेकिन असल में नुकसान राज्य के बच्चों का हो रहा है। सूबे के सबसे महत्वपूर्ण विभाग की किसी को चिंता नहीं है। यह वजह है कि राज्य में शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। लेकिन न तो अधिकारियों को इसकी फिक्र है और न ही हमारे हुक्मरानों का इससे कोई तालुक रहा। आलम यह है कि एससीईआरटी और टायट जैसे संस्थान सिर्फ शो पीस बन कर रह गये हैं। ये संस्थान सिर्फ अधिकारियों की पुनर्वास की पनाहगाह बन कर रह गये है। आखिर शिक्षा विभाग क्यों इन संस्थान की बलि लेने पर उतारू है, क्यों शिक्षा विभाग वर्ष 2013 के शासनादेश पर कुंडली मार कर बैठा है। जवाब स्पष्ट है कि किसी को अपने नौनिहालों की फिक्र नहीं है। सभी अपने लाभ के लिए एससीईआरटी और डायट जैसे संस्थानों को खत्म करने पर तुले है।

दरअसल 27 जून 2013 में प्रदेश के एससीईआरटी व डायट जैसे संस्थानों के अकादमिक पदों के लिए केन्द्र के दिशा निर्देशों के अनुरूप शिक्षक-शिक्षा का अलग संवर्ग का गठन किया गया। केन्द्र के निर्देशानुसार पीएचडी व नेट योग्यताधारी को ही इन संस्थान के अकादमिक पदों पर कार्य करना चाहिए था। इसी शासनादेश के अनुसार एससीईआरटी में 01 अपर निदेशक के पद को समायोजित करते हुए, 01 पद डीन, 04 पद प्रोफेसर, 13 पद एसोसिएट प्रोफेसर तथा 22 पद असिसटेन्ट प्रोफेसर सहित कुल 78 सृजित किये गये। साथ ही एससीईआरटी के 03 संयुक्त निदेशक सहित 05 उप निदेशक, 04 सहायक निदेशक के पदों को समर्पित तथा 03 उप निदेशक व 15 सहायक निदेशक के पदों को समायोजित कर दिया गया। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह शासनादेश यदि राज्य में लागू हो जाता तो प्रदेश की शिक्षा की गुणवत्ता में तो वृद्धि तो होती ही साथ ही राज्य को वित्तीय लाभ भी होता। क्योंकि केन्द्र सरकार द्वारा यह शर्त रखी गयी है कि यदि किसी राज्य में केन्द्र के मानकानुसार एससीईआरटी व डायटों का ढाँचा है तो केन्द्र द्वारा इन राज्यों को इन संस्थानों के कार्मिकों के वेतन का 90 प्रतिशत दिया जाएग।

क्यों नियमावली नहीं बनाना चाहता विभाग..?

बिडम्बना देखिए कि उक्त शासनादेश की नियमावली न होने के कारण वर्तमान में एससीईआरटी के कार्मिकों के वेतन का पूरा भार राज्य पर पड़ता है। सचिव वित्त की 2018 की गणना के अनुसार यह राशि लगभग 8 से 10 करोड़ रूपये है अर्थात वर्तमान में यह इससे भी कई अधिक हो चुकी है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब केन्द्र की दिशा-निर्देशों के अनुरूप शासनादेश जून 2013 में बन चुका है तो आज तक विभाग द्वारा नियमावली बनाकर शासनादेश को लागू क्यों नहीं किया गया ? इसका उत्तर है कि विभागीय अधिकारी नहीं चाहते हैं कि जून 2013 का शासनादेश राज्य में किसी भी दशा में लागू हो, इसलिए जब-जब शासन द्वारा विभाग से नियमावली माँगी विभागीय अधिकारियों द्वारा नियमावली की जगह 2013 के शासनादेश में संशोधन करते हुए नये सिरे से संशोधित ढाँचा भेज दिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि प्रदेश को वित्त व धनराशि की हानि हुई।

कई अधिकरियों का पद समाप्त होने का डर !

अब दूसरा प्रश्न उठता है कि आखिर विभागीय अधिकारी क्यों नहीं चाहते हैं कि राज्य में 2013 का शासनादेश लागू हो ? इसका जवाब है कि इससे शिक्षा तथा राज्य के हित तो सध रहे हैं लेकिन विभागीय अधिकारियों के हित नहीं। इस शासनादेश से अधिकारियों के कई पद समाप्त हो चुके है, यही कारण है कि अधिकारी नहीं चाहते कि यह शासनादेश राज्य में लागू हो फिर चाहे इसके लिए राज्य को कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। शिक्षा विभाग के कुछ महत्वाकांक्षी अधिकारियों की एक लाॅबी बकायदा 2013 के शासनादेश में संशोधन के लिए पिछले सात वर्षों से एड़ी चोटी का जोर लगाये हुए है तथा शासन व सरकार को सफलता से भ्रमित कर करोड़ो की चपत लगा रही है। वित्त सचिव की रिपोर्ट में भी इस बात का अंदेशा इस प्रकार किया गया है -‘‘ऐसा आभास होता है कि सम्भवतः विभागीय कार्मिकों (कदाचित अधिकारी वर्ग) के अपने संवर्ग हेतु पदों की उपलब्धताध्सुविधा की दृष्टि से कार्यवाही में रूचि नहीं है।’’

इतने पद क्यों…?

अब सवाल यह है कि आखिर कब तक शिक्षा विभाग के भारी भरकम ढाँचे जिसमें 03 निदेशालय तथा एक महानिदेशालय के साथ-साथ मण्डल में दो-दो अपर निदेशक व जनपदों में पाँच-पाँच अधिकारियों के साथ-साथ साीमैट जैसे गैर जरूरी संस्थान के बोझ के साथ-साथ सरकार ऐसी प्रवृत्ति को बढ़ावा देगी जबकि उपलब्धि के नाम पर सरकार के पास छात्रों के विधालय छोड़ने की दर में बढ़ोतरी व शिक्षा में गुणवत्ता के स्तर में गिरावट के अलावा कुछ भी न हो।

शेष अगले भाग में।


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