May 2, 2024

कोयला घोटाले में मधु कोड़ा सहित चार लोगों को 3-3 साल की सजा

नई दिल्ली। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को कोयला घोटाले में सजा सुना दी गयी है। यह आदेश दिल्ली की पटियाला हाउस स्थित सीबीआई की विशेष अदालत में जस्टिस भरत पराशर ने सुनाया है। राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव एके बसु कोड़ा के सहयोगी विजय जोशी केंद्रीय कोयला सचिव एचसी गुप्ता को भी 3-3 साल की सज़ा सुनाई गई है, जबकि कंपनी विसुल पर 50 लाख का जुर्माना लगाया गया है। इन सब पर इल्जाम है कि साल 2007 में हुए कोयला घोटाले के वक्त इन लोगों ने अपने पदों का दुरुपयोग किया था। इनके खिलाफ बहुचर्चित कोयला घोटाले में कोलकाता की कंपनी विनी आयरन एंड स्टील उद्योग लिमिटेड (विसुल) को गलत तरीके से राजहरा नॉर्थ कोल ब्लॉक आवंटित करने का आरोप है। राजहरा झारखंड के पलामू में है।

नॉर्थ कोल ब्लॉक विसुल को आवंटित करने के लिए सरकार और इस्पात मंत्रालय ने कोई अनुशंसा नहीं की थी। तब तत्कालीन कोयला सचिव एचसी गुप्ता और झारखंड के तत्कालीन मुख्य सचिव अशोक कुमार बसु की सदस्यता वाली 36वीं स्क्रीनिंग कमेटी ने अपने स्तर पर ही इस ब्लॉक को आवंटित करने की सिफ़ारिश कर दी। इसी को आधार बनाकर तत्कालीन मधु कोड़ा सरकार ने यह कोयला खदान विसुल को आवंटित कर दी। साल 2007 में हुए इस आवंटन के बदले अरबों रुपये की रिश्वतखोरी और हेरफेर का आरोप लगाया गया। आरोप है कि स्क्रीनिंग कमेटी ने इस मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी अंधेरे में रखा। तब कोयला मंत्रालय का प्रभार भी प्रधानमंत्री के ही पास था। लिहाजा उन्हें इसकी जानकारी देनी चाहिए थी।

जांच एजेंसी ने सभी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश), 420 (धोखाधड़ी), 409 (सरकारी कर्मचारी द्वारा आपराधिक विश्वासघात) और भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम की धारा के तहत केस दर्ज किया था। कैग (भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) ने मार्च 2012 में अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में तत्कालीन सरकार पर आरोप लगाया था कि उसने 2004 से 2009 तक की अवधि में कोल ब्लॉक का आवंटन गलत तरीके से किया है। इससे सरकारी खजाने को 1.86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। कैग रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने कई फर्मों को बिना किसी नीलामी के कोल ब्लॉक आवंटित किए थे।

मधु कोड़ा 14 सितंबर 2006 को झारखंड के मुख्यमंत्री बने थे। तब वे किसी भी दल से जुड़े हुए नहीं थे. भाजपा से टिकट न मिलने के बाद उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीता था। वे 23 अगस्त 2008 तक इस पद पर रहे. वे देश के तीसरे ऐसे मुख्यमंत्री बने जो निर्दलीय थे। साल 2009 में उन्होंने सांसद का चुनाव भी लड़ा। इसमें उन्हें जीत हासिल हुई। इससे पहले वे बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा सरकारों में मंत्री रह चुके थे। उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत छात्र नेता के तौर पर की थी।


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