राज्यपाल डॉ. कृष्णकांत पाल के पांच साल पूरे, उत्तराखंड में साढे़ तीन साल का कार्यकाल भी पूरा
राज्यपाल के रूप में डॉ. कृष्णकांत पॉल के पांच साल का कार्यकाल पूरा हो गया। हालांकि राज्यपाल के कार्यकाल के लिए कोई समयावधि तय नहीं है लेकिन अब तक की परंपरा के अनुसार पांच साल पूरे होने पर उनके उत्तराधिकारी को लेकर सुगबुगाहट तेज है। सूत्रों के अनुसार जल्द ही इस पर तस्वीर साफ होने की उम्मीद है। इस बीच राजभवन में चर्चा यह भी है कि आंध्रप्रदेश की तर्ज पर उन्हें राज्यपाल के रूप में और काम करने का मौका भी मिल सकता है। या उन्हें किसी बड़े राज्य की कमान भी मिल सकती है। आठ जुलाई 2013 को मेघालय के राज्यपाल बने डॉ. पॉल ने आठ जनवरी 2015 को उत्तराखंड की कमान संभाली थी। अपने राजनीतिक बयानों और इस्तीफे पर केंद्र सरकार से तनातनी की वजह से विवादित हुए डॉ. अजीज कुरैशी के उत्तराधिकारी के रूप में उत्तराखंड आए डॉ. पॉल ने राजभवन की गरिमा का पूरा पूरा ख्याल रखा। अपने साढे़ तीन साल के कार्यकाल में डॉ. पॉल का शिक्षा के प्रति खासा फोकस रहा है। इस दौरान विद्यालयी से उच्च शिक्षा स्तर तक मेधावी छात्र-छात्राओं और शिक्षकों को प्रोत्साहित करने के लिए नए पुरस्कार भी शुरू किए गए हैं।
रावत पर रियायत रही चर्चा में
वर्ष 2016 में कांग्रेस में हुई बगावत की वजह से हरीश रावत सरकार खतरे में पड़ गई थी। दबाव राष्ट्रपति शासन की सिफारिश का था, लेकिन राज्यपाल ने हिम्मत दिखाते हुए रावत को बहुमत साबित करने के लिए 10 दिन का वक्त दे दिया था। इससे भाजपा नेता खुश नहीं थे। बाद में केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लगा ही दिया था। आयुर्वेद विवि के रजिस्ट्रार मृत्युजंय मिश्र की नियमविरूद्ध नियुक्ति को लेकर भी राजभवन का रूख सख्त रहा। राज्य आंदोलनकारियों को क्षैतिज आरक्षण के विधेयक को मंजूरी न देने की वजह से वो निशाने पर भी रहे।
नियुक्ति राज्यपाल की
राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। अब तक की परंपरा के अनुसार राज्यपाल का कार्यकाल को उसके पद ग्रहण करने से आगे पांच साल तक के लिए होता है। लेकिन राष्ट्रपति चाहें तो इस कार्यकाल को बढ़ा भी सकते हैँ। साथ ही समय से पहले कभी भी पद से हटा भी सकते हैं।