May 13, 2024

कतर में आठ भारतीय नौसैनिकों को फांसी की सजा, मीडिया के रक्षा विशेषज्ञ चुप

– न्यूज स्टूडियो में अधिकांश रक्षा विशेषज्ञो का युद्ध से नहीं रहा कोई नाता
– कैप्टन सांगवान या कर्नल राकेश कुकरेती जैसे रणवीरों को कोई नहीं बुलाता
कतर की एक प्राइमरी कोर्ट ने भारत के आठ पूर्व नौसैनिकों को फांसी की सजा दी है। यह सजा इजरायल के लिए उनकी पनडुब्बियों की जासूसी करने के आरोप में दी गयी है। इस मामले को लेकर प्रिंट मीडिया में तो खबरें प्रकाशित हुई हैं लेकिन इलेक्ट्रानिक मीडिया चुप्पी साधे हुए हैं। उधर, इजरायल में होटल में बैठे गोदी पत्रकार इजरायल-हमास युद्ध की रिपोर्टिंग ऐसे कर रहे हैं मानो वो गाजा घूम रहे हों। यहां न्यूज चैनल के स्टूडियो में बैठे तथाकथित रक्षा विशेषज्ञ यानी पूर्व सैन्य अफसर ऐसी-ऐसी बातें करते हैं कि मानो युद्ध की कमान उन्होंने संभाली हुई हो। न्यूज स्टूडियो में बैठने वाले अधिकांश पूर्व सैन्य अफसर कितने बहादुर हैं, या उनका युद्ध में कितना अनुभव है यही बता देता है कि जेएंडके समेत कितने युद्धों में उन्होंने कितनी सेवा दी है।
मैं उत्तराखंड के एक रिटायर्ड ले. जनरल का बड़ा सम्मान करता था। 1971 के युद्ध में उन्होंने ब्रिगेडियर के तौर पर भाग लिया था। बाद में उन्हीं की पलटन का एक पूर्व ले. कर्नल मिला। उन्होंने बताया कि महाशय अमरीका से कोर्स कर युद्ध मे आए थे। मोर्चा पर थे कि तभी आकाश में हेलीकॉप्टर मंडराया। तत्कालीन ब्रिगेडियर ने उम्मीद लगाई कि चॉपर नीचे उतरेगा और उन्हें सकुशल वापस ले जाएगा। लेकिन हेलीकॉप्टर नीचे उतरा ही नहीं। शायद रेकी करने आया था। इसके बाद ब्रिगेडियर हताश और निराश हो गये। चिल्लाने लगे , हाथ हिलाने लगे कि नीचे उतरो, नीचे उतरो। पर पायलट चलता बना। ये बाद में मीडिया के साथ बातचीत में खुद को युद्ध का हीरो बताते रहे।
जो अफसर युद्ध में जान लड़ाते हैं वो न्यूज स्टूडियो में पहुंचते ही नहीं। ओएनजीसी में कार्यरत कैप्टन सतेंद्र सागवान को कितने न्यूज चैनल स्टूडियो बुलाते हैं। अगले बंदे ने करगिल युद्ध में अपनी जान लड़ा दी थी। लैंड माइन में तब तक पैर नहीं उठाया जब तक कि सभी साथी सुरक्षित नहीं पहुंच गये। फिर जब लैंडमाइन फटी तो अपने पैर के टुकड़ों को एकत्रित कर आठ किलोमीटर पैदल लेकर नीचे बेस तक पहुंचे। कर्नल राकेश कुकरेती 1971 के वार हीरो रहे। उनको कोई चैनल नहीं बुलाता तो वह देहरादून में नौनिहालों को देशभक्ति और देशरक्षा के गुर सिखा रहे हैं।
कहने का अर्थ यह है कि न्यूज स्टूडियो में बैठने वाले रक्षा विशेषज्ञ सैन्य अफसर रहे हैं। लेकिन उनसे उम्मीद की जाती है कि वो बिना किसी डर के अपनी बातें कहें। रूस-यूक्रेन, इसराइल-हमास युद्ध से अधिक इस बात पर जोर दें कि कश्मीर में आतंकवाद कैसे रुके। वहां लगभग आठ हजार सैनिक शहीद हो चुके हैं। कतर में फांसी की सजा पाये नौ सैनिकों के बचाव की बात करें। यूं खामखां विदेशी हमलों पर मीडिया ट्रायल न करें। अच्छी खासी पेंशन मिलती है। उसी में सम्मान से गुजारा करें। पूर्व सैनिक हो, खिलौना न बनें।


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