May 20, 2024

क्लर्क से राष्ट्रपति उम्मीदवारी तक… जानिए कैसा रहा द्रौपदी मुर्मू का अबतक का सफर

ओडिशा की आदिवासी नेता रहीं द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर से उम्मीदवार हैं. अपनी साफ छवि और बेबाक फैसलों वाली बीजेपी की इस आदिवासी नेता की निजी जिंदगी भले ही त्रासदियों से भरी रही हो, लेकिन देश के इस सबसे बड़े पद पर उनका नामांकन होना ये साबित करता है कि वह मुश्किल हालातों से निपटना बखूबी जानती हैं. झारखंड की पूर्व राज्यपाल रही इस नेता पर बीजेपी ने क्यों जताया भरोसा और कैसा रहा द्रौपदी मुर्मू का अब-तक का सफर उनके बारे में यहां सब-कुछ जानिए.

ओडिशा के मयूरभंज जिले से ताल्लुक रखने वाली द्रौपदी मुर्मू के नाम झारखंड की पहली महिला आदिवासी और इस राज्य में सबसे लंबे समय तक रहने वाली राज्यपाल होने का गौरव है. झारखंड की राज्यपाल रहते हुए पक्ष और विपक्ष दोनों ही उनकी कार्यशैली के मुरीद रहे. उन्होंने ओडिशा के सर्वोत्तम विधायक को दिया जाने वाला नीलकंठ पुरस्कार भी हासिल किया है. मौजूदा वक्त में वह इस पद से रिटायर होने के बाद अपने गृहराज्य ओडिशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर में रह रही हैं. NDA की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के भारत की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति बनने के आसार साफ नजर आ रहे हैं, क्योंकि उनको उम्मीदवार बनाने वाली एनडीए के पास 48 फीसदी इलेक्ट्रोल वोट हैं. इसके साथ ही इससे आदिवासी तबके में बीजेपी (BJP) की छवि भी सशक्त होगी.

क्यों हैं द्रौपदी मुर्मू स्पेशल

द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की राह पांच साल पहले ही साफ हो गई थी. साल 2017 में जब पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का कार्यकाल खत्म होने जा रहा था. तब भी बीजेपी ने उनके नाम पर विचार किया था, लेकिन उस वक्त बाजी बिहार के राज्यपाल रहे रामनाथ कोविंद के हाथ लगी. शायद इसके पीछे झारखंड के राज्यपाल के तौर पर उनकी साफ छवि और बेबाक फैसले रहे हैं. जब कुछ राज्यपालों पर पॉलिटिकल एजेंट के आरोपों के उस वक्त भी द्रौपदी मुर्मू ने खुद को ऐसे विवादों से दूर रखा. साल 2009 में बीजेपी और बीजेडी की तनाव वाले रिश्तों के बाद भी वह जीतने में सफल रही, भले ही उस वक्त बीजेपी  अलग हो चुके बीजद की दी गई चुनौती के सामने फीकी पड़ गई हो.

द्रौपदी मुर्मू ने 1979 में भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से बीए किया और फिर ओडिशा सरकार के सिंचाई और ऊर्जा विभाग में जूनियर सहायक क्लर्क की जॉब भी की. बाद में उन्होंने एक शिक्षक के तौर पर भी अपनी पहचान बनाई. इस दौरान उन्होंने रायरंगपुर के श्री अरविंदो इंटिग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में ओनररी टीचर  के तौर पर अपनी सेवाएं दी.

ऐसे हुई राजनीतिक सफर की शुरुआत

शिक्षक के पेशे से उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत साल 1997 में रायरंगपुर  नगर पंचायत के वार्ड पार्षद से हुई. वह यहां की नगर पंचायत उपाध्यक्ष भी रहीं. उनका बीजेपी में पर्दापण साल 2000 और 2009 में रायरंगपुर विधानसभा चुनाव जीत विधायक बनने के साथ हुई. इसके बाद उन्होंने पलटकर पीछे नहीं देखा वो आगे बढ़ती गई. इसके साथ ही उन्होंने साल 2000 -2004 में बीजेपी और बीजेडी (BJD) की गठबंधन सरकार के दौरान नवीन पटनायक की कैबिनेट में लगभग दो-दो साल तक स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री के तौर पर वाणिज्य और परिवहन विभाग और मत्स्य पालन के अलावा पशु संसाधन विभाग की जिम्मेदारी संभाली थी. साल 2015 में मयूरभंज  की बीजेपी की अध्यक्ष रहने के दौरान उन्हें पहली बार झारखंड का राज्यपाल बनाया गया था और इसके बाद से ही वह बीजेपी की सक्रिय राजनीति से दूर हो गईं. उन्होंने साल 2006 से 2009 तक बीजेपी के एसटी (अनुसूचित जाति) मोर्चा की ओडिशा प्रदेश अध्यक्ष पद संभाला. इसके अलावा वह दो बार बीजेपी एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रहीं. साल 2002 से 2009 और साल 2013 से अप्रैल 2015 तक इस मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी रहीं थी.

पहली बार विधायक बनने पर केवल नौ लाख थी जमा पूंजी

पहली बार साल 2009 में विधायक बनने पर द्रौपदी मुर्नू के पास गाड़ी तक नहीं थी. उनके चुनावी शपथ पत्र में उनकी कुल जमा पूंजी 9 लाख रुपये ही दर्ज थी. इसमें भी चार लाख रुपये उन पर उधार थे. शपथ पत्र में उनके पति के श्याम चरण मुर्मू के पास एक स्कॉर्पियो गाड़ी और एक बजाज चेतक स्कूटर होने का हवाला दिया गया था.

उम्मीदवार बनाने पर ये कहा

बीजेपी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने 21 जून की देर शाम राष्ट्रपति चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के उम्मीदवार के तौर पर द्रौपदी मुर्मू के नाम का ऐलान किया. इस दौरान वह 1600 किलोमीटर दूर रायरंगपुर में थीं.  20 जून को ही अपने नाम की घोषणा के पहले उन्होंने अपना 64 वां जन्मदिन मनाया था. मंगलवार 23 जून को उन्होंने कहा कि वो ओडिशा के सभी एमएलए और एमपी के सहयोग पाने को लेकर आशावादी हैं. ” उन्होंने कहा, ‘मैं मिट्टी की बेटी हूं. मुझे सभी सदस्यों से एक उड़िया के रूप में मेरा समर्थन करने का अनुरोध करने का अधिकार है. ”

उन्होंने बताया कि वह टेलीविजन पर यह जानकर हैरान और खुश दोनों थीं कि उन्हें एनडीए ने उनका नामांकन शीर्ष पद के लिए किया. आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू ने कहा, “मैं हैरान भी हूं और खुश भी. सुदूर मयूरभंज जिले की एक आदिवासी महिला के रूप में, मैंने शीर्ष पद के लिए उम्मीदवार बनने के बारे में नहीं सोचा था. एनडीए सरकार ने अब शीर्ष पद के लिए एक आदिवासी महिला का चुनाव कर बीजेपी के ‘सब का साथ, सब का विश्वास’ के नारे को साबित कर दिया है.” इस दौरान उन्होंने अपनी मंशा यह कह कर साफ कर दी. उन्होंने कहा कि वो राजनीति से इतर देश के लोगों के लिए काम करेंगी. वे इस पद के लिए संवैधानिक प्रावधान और अधिकार के तहत काम करना पसंद करेंगी. उन्होंने आगे कहा कि इससे अधिक वो फ़िलहाल और कुछ नहीं कह सकती.

जीवन संघर्षों लड़कर हैं चमकी 

राष्ट्रपति की दौड़ में शामिल द्रौपदी मुर्मू की जिंदगी मुश्किल हालातों के दौर से गुजर कर ही निखरी है. संथाल आदिवासी  बिरंची नारायण टुडू की पुत्री के तौर पर 20 जून 1958 को मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में उनका जन्म हुआ. अगर वह राष्ट्रपति बनती हैं तो वह देश की  आज़ादी के बाद पैदा होने वाली पहली राष्ट्रपति होंगी. उनकी निजी जिंदगी के बारे में पब्लिकली ज्यादा बातें सामने नहीं आई हैं, उनके पति श्याम चरण मुर्मू की मौत कम उम्र में हो गई थी. उनके तीन बच्चों में से दो बेटों की भी अचानक मौत हो गई थी. अब उनकी एक बेटी इतिश्री मुर्मू हैं.उनकी शादी रायंगपुर के रहने वाले  गणेश चंद्र हेम्बरम से हुई है. उनकी भी एक बेटी आद्याश्री हैं. द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति उम्मीदवार चुने जाने को लेकर उनकी बेटी इतिश्री मुर्मू  ने कहा कि जो मेरी मां को जानते हैं कि वो किस तरह की इंसान हैं तो वो जरूर उनका समर्थन करेंगे. उन्होंने कहा कि वह एक अनुशासन प्रिय मां होने के साथ ही जीवन के सफर में उनकी अच्छी शिक्षिका भी हैं.


WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com