May 13, 2024

डा० प्रेम बहुखण्डी ने उठाई मांग- मूल निवास -1950 से लागू हो, क्या उनके ज्वलंत मुद्दे? पढ़े पूरी रिपोर्ट

पौड़ी लोक सभा सीट पर मेरी दावेदारी और शास्त्रार्थ की चुनौती

प्रेम बहुखण्डी

जैव विविधता बनाम मूल निवासी
1. उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में जब आप सफऱ करते हो तो और थोड़ा संवेदनशील हो तो तीन चीजें आपका ध्यान बरबस अपनी तरफ खींचती हैँ – लेंटाना झाड़ी, गाजर घास और काला बांस. इन तीनों विदेशी झाड़ियों ने, पर्वतीय क्षेत्र की मूल बनस्पतियों को खत्म कर दिया है. पहले सड़क के आसपास तूँगा, हिसोले, किन्गोड़े बहुतायत में दिखते थे, पानी वाले रौलों में, पेपरमेंट और पुदीना की बहुतायत होती थी जो अब लगभग खत्म हो गई है.
2. इनका असर उन पक्षियों और जीव जंतुओं पर भी पड़ रहा है जो इन पर निर्भर रहते थे. ये पूरी इकोलॉजी या पारिस्थितिकी तंत्र के लिए चुनौती हैँ. इसका नुकसान दिखना शुरू हो गया है.
3. यही स्थिति मूल निवास की भी है. मोहल्ले में अगर 10-15 प्रतिशत लोग अलग अलग जाति धर्म के हों तो इससे जीवन में समृद्धि आएगी, अगर आधे बाहर के होंगे तो चुनौती होगी लेकिन जैसे ही आप, अल्पसंख्यक होओगे, आपकी संस्कृति, सभ्यता, भाषा खत्म हो जाएगी.
4. उत्तराखंड आंदोलन की पृष्ठभूमि में, यहाँ की संस्कृति, भाषा और सभ्यता को बचाये रखना भी एक महत्वपूर्ण विषय था.
5. हम पहाड़ियों को एक सच स्वीकारना होगा कि भले ही कागजों में हमें आदिवासी होने का सर्टिफिकेट न मिला हो लेकिन समाज शास्त्र की परिभाषा के हिसाब से हम आदिवासी ही हैँ और इसी लिए हमारी बोली भाषा, पहनावा, संस्कृति को बचाना बहुत आवश्यक है. और यह तभी संभव है जब मूलनिवासी और अन्य के बीच स्पष्ट अंतर किया जायेगा.
6. स्पष्ट तौर पर मूलनिवास कानून बनाना होगा जिसमें कम से कम 1950 की तिथि को सीमा मानना होगा. हिमाचल की तरह क्लास 3 और क्लास 4 की नौकरियों को मूलनिवासीयों के लिए आरक्षित करना होगा.
7. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के कांग्रेस पार्टी के घोषणा पत्र में,स्पष्ट लिखा था कि क्लास 4 की नौकरी में, ब्लॉक के मूलनिवासी को प्राथमिकता दी जाएगी जबकि क्लास 3 की नौकरियों के लिए उस जिले के मूलनिवासी को प्राथमिकता दी जाएगी जबकि सचिवालय की क्लास 3 और क्लास 4 की नौकरी में राज्य के मूलनिवासी आ सकते हैँ. निसंदेह क्लास 2 के लिए कुछ रिजर्वेशन हो और क्लास 1 तो अखिल भारतीय सर्विस ही रहेगी.
8. इससे मूलनिवासी के अधिकारों की रक्षा होगी, हमारी संस्कृति की रक्षा होगी. स्थानीय जैव विविधता बची रहेगी.
9. किसी भी प्रकार का चुनाव लड़ने के लिए भी, मूल निवास अनिवार्य शर्त हो. याद रहे पिछले शिक्षा मंत्री ने, बिहार के अपने रिश्तेदारों को शिक्षा विभाग में क्लास 4 की नौकरी भी दे दी थी. राज्य के अधिकांश छोटे बड़े ठेके बाहर के लोगों के पास हैं, जो अपने हिसाब से यहाँ की ब्यूरोक्रेसी और नेताओं को संचालित कर रहे हैं .
10. यदि मूल निवास कानून शीघ्र लागू नहीं हुआ तो राज्य को त्रिपुरा बनने से कोई रोक नहीं सकता है. त्रिपुरा में दुनिया के सबसे सभ्य कहलाये जाने वाले बंगालियों ने मूल निवासियों की जमीन, भाषा, संस्कृति सब छीनकर उन्हें जंगलों में खदेड़ दिया है . उधमसिंह नगर में मूल निवासी थारू और भोक्सा के साथ भी पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान से आये लोगों ने यही किया है .
11. हमारी मांग है कि मूल निवास -1950 से लागू हो .
व्यक्ति नहीं विचार जरूरी.


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