May 7, 2024

पुस्तक समीक्षाः फुटपाथ पर आजीविका में आत्मसम्मान तलाशती कविताऍं

1-कृति का नाम – फुटपाथ का आदमी
2-कृतिकार – डॉ.अशोक कुमार मिश्र ‘क्षितिज’
3-प्रकाशक – आर.के.पब्लिकेशन मुम्बई -400068
4-प्रकाशन वर्ष – 2023 ( सजिल्द संस्करण)
5-कृति का मूल्य – 225/- मात्र
6-पृष्ठ संख्या – 90 (कवर अतिरिक्त)

हिन्दी साहित्य के सुपरिचित कवि डॉ.अशोक कुमार मिश्र किसी परिचय के मोहताज नहीं है। उत्तराखंड सचिवालय-देहरादून में अनुभाग अधिकारी के जिम्मेदार व अति दायित्वपूर्ण पद पर काम करते हुए भी अबतक उनकी चार काव्यात्मक कृतियाॅं सामने आ चुकी हैं। इस कड़ी में यह पाॅंचवी कृति है। उनकी कृतियों के नाम हैं – मैं चुप हूॅं, पूॅंछ कटी छिपकली, उनसे कहना है,अंतहीन चुप्पी और ‘फुटपाथ का आदमी’ । समीक्ष्य कृति में उनकी 75 रचनाओं का संकलन है।

कविता स्वछन्द भावनाओं का सहज विन्यास होती है। इसी दृष्टि से देखा जाए तो उनकी रचनाओं में स्वत: स्फूर्त प्रवाह दृष्टिगोचर होता है। भावाभिव्यक्ति में सहज प्रेषणीयता विद्यमान है। कविता का सरोकार आम आदमी से होता है। बोल-चाल की भाषा में आम आदमी की पीड़ा का शब्द -चित्र कवि ने बेहद कुशलता और संजीदगी से उकेरा है। रोजी-रोटी की तलाश में निकला हुआ आम आदमी ही उनकी कविता का प्रतिपाद्य विषय है। हाड़-तोड़ मेहनत के बाद फुटपाथ पर जिंदगी बसर करने वाला आदमी सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। कवि की संवेदनात्मक दृष्टि इस सार्वभौमिक सत्य को उजागर करती है – रोटी की तलाश में/एक अनबुझी आस/चलते -चलते पड़ गये/पैर में फफोले/ रह-रहकर पेट में/फूटते भूख के गोले।

‘क्षितिज’ की कविताओं में वर्ण्य विषय की व्यापकता है। फलक बहुआयामी है। उनके पात्र जनजीवन से जुड़े हैं । इनमें- ठेलेवाला, चायवाला, अंडेवाला, बैंड वाला, रिक्शावाला, पानवाला, बाॅंसुरी वाला, खिलौने वाला, पल्लेदार, लकड़हारा, दैनिक मजदूर, घसियारन, दूधिया, मोचीराम, नाविक, मछुआरा, कुल्ली जैसे किरदार शामिल हैं। कवि की दृष्टि निर्जन होते पहाड़ की पड़ताल करती हुई पर्यावरण संरक्षण का भी संकल्प लेती है। पेट की आरियाॅं पर उनकी कल्पना दर्शनीय है -हुक्म की/ रहमत से चलती/ पेट पर हैं आरियाॅं। सड़क पर अंडा बेचने वाले की पीड़ा झकझोर कर रख देती है – कल बच्चे की फीस का है/आखिरी दिन/जमा करना है बिजली बिल/लाना है/पत्नी की दवा और राशन । पिंजरे की पीड़ा व्यक्त करते समय उसकी पीड़ा मुखर हो उठती है। बेटा-बेटी में भेदभाव कवि को सहज स्वीकार्य नहीं है -क्यों हो जाती/कमरे में वह बंद/गुमसुम -सी यह सोचना/बेटा लाट साहब सा/परदेश पढ़ने जा रहा। प्रोषित पतिका नायिका की विरह व्यथा भी कवि की लेखनी से अछूती नहीं है – घड़क रहा है जो हर पल भीतर/वो दिल तो हमारा है/चेहरे पर मुस्कान सजाना/ बस ये काम तुम्हारा है ।

नयी कविता के काव्य विधान में अलंकारिक शैली का विकास नव्य आलोक में हुआ है। फुटपाथ का आदमी में यह खुलकर प्रयुक्त हुआ है। यथा- अदहन -सा मन, रुसवाईयों का सूरज,घाव की भाजी,विश्वास का तेल, संतोष की सब्जी, मेढकों के कोरस मंत्र, शुतुरमुर्गी व्यवस्था, कुकुरमुत्ते की छत-सी आदि।

ऑंग्लभाषा के शब्दों का प्रयोग कवि धड़ल्ले से करता है – ऑनलाइन, ऑफलाइन, नेटवर्क, टारगेट, सर्विस,माॅल,क्रेच,केयर-टेकर, सैंडिल, स्लीपिंग मोड, सेल्फी, मोबाइल,पैड,फ्लेवर, स्पीड ब्रेकर्स आदि।

देशज शब्दों के प्रयोग में भी कवि ने कोताही नहीं बरती है। कुछ प्रमुख शब्द जो रचना के बीच में आये हैं काव्य सौन्दर्य की सहज अभिवृद्धि करते हैं। यथा-अदहन,कनई,गोइठा,छनिहर,बइठउनी,थरिया, कंडा, जवार, लोढ़ने आदि ।

फुटपाथ का आदमी आम आदमी की कविता है। इसमें नयी कविता के प्रतिमानों,बिम्बों, लक्षणों और शैलियों को अमली जामा पहनाया गया है। समीक्ष्य पुस्तक नयी कविता का प्रतिनिधित्व करने में सर्वथा सक्षम है। पुस्तक का वाह्य कलेवर अत्युत्तम है। कवि अशोक कुमार मिश्र ‘क्षितिज’ बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न साहित्यकार हैं। पुस्तक पठनीय रोचक और संग्रहणीय है।


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