May 19, 2024

बड़ी खबर: हिडन एजेंड़ाः मुख्यमंत्री रावत के खिलाफ बलूनी की मीडिया का मकड़जाल

देहरादूनः उत्तराखंड में इन दिनों एक बार फिर अफवाह का बाजार गर्म है। ये अफवाहें मीडिया का एक विशेष धड़ा फैला रहा है। इन अफवाहों के पीछे एक खास मकसद है, एक महत्वकांक्षा है और एक कभी न खत्म होने वाली कुंठा है। चापलूस मीडिया इन अफवाहों के जरिये अपने हित साध रहा है तो दूसरी ओर एक महत्वकांक्षा के पूरे होने का सपना देखा जा रहा है। ऐसे सपने पहले भी देखे गये और देखे जायेंगे। शायद उत्तराखंड की नियति ही ऐसी है कि प्रदेश में अबतक जो भी सरकार रही वह हमेशा षड़यंत्रों के साये और राजनीति के कुचक्रों में फंसी रही। इस बार भी प्रदेश के मुखिया के खिलाफ अफवाहों का मकड़जाल बुना जा रहा है जिसे मीडिया के जरिये अंजाम दिया जा रहा है।

मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा

सीएम रावत को प्रदेश की कमान मिलने के बाद बधाई देते बीजेपी के दिग्ज

यह बात सर्वविदित है कि प्रदेश में ग्राम प्रधान का चुनाव न जीतने वाले विधायक बन जाते हंै और राजनीति के चोर दरवाजे से इंट्री पाने वाले मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देखने लगते है। राज्य की राजनीति में ऐसे सैकड़ों उदाहरण है। प्रदेश में भाजपा सरकार गठित होने के बाद भी कई नेताओं के दिलोदिमाग में मुख्यमंत्री बनने का नशा सवार है। इन दिनों मीडिया में यह अफवाह फैलाई जा रही है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री की विदाई तय है। ये अफवाहें सुनियोजित तरीके से फैलाई जा रही है। इसके पीछे एक मजबूत तंत्र काम कर रहा है जो प्रदेश में मुख्यमंत्री विरोधी खबरों को प्रचारित और प्रसारित करवा रहा है। इन खबरों में राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी छाये हैं। यह बात सर्वविदित है कि अनिल बलूनी मुख्यमंत्री बनने की हरसत पाले हैं। न कोई राजनीतिक अनुभव और न कोई जनाधार लेकिन बलूनी की ठसक किसी बड़े नेता से कम नहीं, कुल मिलाकर उनकी समझ इतनी है कि वह उस मुख्यमंत्री को कमतर आंकते हैं जिसकी बदौलत वह राज्यसभा पहंचे।

टीएसआर सरकार को लेकर बलूनी की बढ़ती बेचैनी!

सीएम रावत को प्रदेश में कुशल नेतृत्व के लिए बधाई देते अमित शाॅह

राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के लिए बेचैन हैं। उनकी कार्यशैली बताती है कि वह प्रदेश का भाग्य विधाता बनना चाहते हैं। लेकिन उनके सामने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह किसी बड़े अवरोधक से कम नहीं है। चूंकि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह प्रदेश में भ्रष्टाचार रहित एक पारदर्शी सरकार चला रहे हैं। यह सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की मजबूती भी है। जिससे अनिल बलूनी हमेशा असहज महसूस करते हैं। यही कारण है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर वह खमोश रहते हैं। उनकी यह खामोशी जता देती है कि वह मुख्यमंत्री बनने के लिए कितने बेचैन हैं। जबकि बलूनी बखूबी जानते है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री की संघ की प्रष्ठभूमि है और वह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं ग्रहमंत्री अमित शाॅह व देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी होने के साथ साथ उनके माॅडल पर भी फिट बैठते है। इतना ही नहीं अमित शाॅह पहले ही साफ कर चुके है कि रावत सरकार न सिर्फ पांच वर्ष पूरी चलेगी, बल्कि राज्य के 2022 के विधानसभा चुनाव भी त्रिवेन्द्र सिंह की साफ छबि पर ही लडा जायेगा। यह भी साफ है कि सीएम रावत के साथ मेजर जनरल खंडूडी वाली स्थिति नहीं है। जनरल के खिलाफ पहले ही दिन से 18 विधायको ने दिल्ली में डेरा डाल दिया था। जबकि डाॅ रमेश पोखरियाल निशंख को भ्रष्टाचार के कारण अपना पद छोडना पडा था। साथ ही सरकार पूर्ण बहुमत में न होने के कारण भी दिल्ली दरवार विधायको के मूवमेंट पर निर्णय लेने के लिए मजबूर था, लेकिन आज की परिस्थति भिन्न है, बीजेपी पूर्ण बहुमत में है और अधिकांश विधायक मोदी शाॅक के मैजिक के कारण ही विधानसभा पहुंच पाये है। ऐसे में विधायक भी ये मानते है कि त्रिवेन्द्र सिंह रावत ही अब प्रदेश में उनका मुखिया है, जिसके माध्यम से दिल्ली का रास्ता भी आसान होगा और आगामी विधानसभा चुनाव का टिकट भी पक्का होगा। इस लिए विधायक मजबूती के साथ टीएसआर सरकार के साथ खडे है।

बलूनी के लिए दिग्गजों को किया किनारे

राज्यसभा पद के लिए सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत के नेतृत्व में नामांकन कराते अनिल बलूनी

जो बलूनी आज मीडिया के एक विशेष धड़े में खुद को मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर पेश कर रहा है। उसी बलूनी की खातिर त्रिवेंद्र ने भाजपा के दिग्गजों की नाराजगी मोली। त्रिवेंद्र ने राज्यसभा के लिये पार्टी आलाकमान के समक्ष बलूनी को उपयुक्त दावेदार बताया। जबकि राज्यसभा सदस्य के लिए विजय बहुगुणा, बलराज पासी, से लेकर कई मजबूत नेताओ के दमदार दावेदारी थी लेकिन त्रिवेंद्र ने बलूनी पर भरोसा जताया। वही बलूनी आज अपने हिडन एजेंडे के तहत मीडिया में खुद को मुख्यमंत्री के दावेदार बता कर त्रिवेंद्र के खिलाफ षडयंत् रच रहा है।राज्यसभा सांसद को लेकर जब दिल्ली आलाकमान ने सीएम रावत की खुली राय मांगी तो उन्हों ने अनिल बलूनी का नाम लिया। इसके पीछे सीएम रावत का तर्क था कि बलूनी युवा है और पार्टी के लिए एक स्तर पर मेहनत कर रहे है। इस लिए उनमें राजनीतिक समझ विकसित हो और वह राज्य के लिए कुछ बेहतर कर पायेंगे। जिसके बाद सीएम के प्रस्ताव को अमित शाॅह ने स्वीकार किया और बलूनी पिछले दरवाजे से राजनीति में एंट्री करने में सफल हुये।

मीडिया . अफवाहों का मकड़जाल

मीडिया में आये दिनों मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाने की खबर आती जाती रहती है। सूत्रों का कहना है कि ये खबरों विशेष तौर प्लांटेड की जाती है। लेकिन मुख्यमंत्री पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ता। चूंकि उन्हं मालूम है कि वह प्रदेश में बेहत्तर काम कर रहे हैं और केंद्रीय नेतृत्व उनके काम से खुश है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ मीडिया का एक विशेष सोच वाला वर्ग इस प्रकार की खबरों को प्रचारित कर रहा है। क्योंकि उस विशेष वर्ग को अनिल बलूनी में अपना स्वार्थ नजर आता है। जबकि स्वयं अनिल बलूनी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया काॅर्डिनेटर है। ऐसे वह भली-भांति मीडिया से व्यक्तिगत रूप से परिचित है। अगर किसी समचार से राज्य में अस्थिरता का महौल पैदा किया जा रहा हो तो उनकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वह उसका संज्ञान लेकर ऐसी खबरों का खंडन कर स्थिति स्पष्ट कर सकते हैं। लेकिन अनिल बलूनी स्वयं ऐसी खबरों को बल देते हैं। ऐसे में उनसे नैतिक जिम्मेदारी की आशा करना बेमानी होगी।

त्रिवेंद्र सिंह रावत का तिलिस्म

मोदी की मौजूदकी में प्रदेश की कमान सौपते सीएम रावत

प्रदेश के मुख्यमंत्रियों का अगर इतिहास खंगाले तो साफ होता है कि त्रिवेंद्र किसी तिलिस्म से कम नहीं है। त्रिवेंद्र सिंह रावत अब तक के मुख्यमंत्रियों की तुलना में काफी मजबूत हैं। अपने राजनीतिक कौशल के बल पर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कई रिकाॅर्ड ध्वस्त कर प्रदेश की राजनीति में एक लंबी रेखा खींच दी है। वह प्रदेश के ऐसे मुख्यमंत्री है जिन्होने लोकसभा की पांचों सीटें पार्टी के नाम की। जबकि प्रदेश में जिसकी सरकार रही वह कभी लोकसभा की पूरी सीटे नहीं जीत पाया। जब अन्य राज्यों हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस जीत रही थी तब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने थराली उपचुनाव जीता कर बता दिया कि वह राजनीति के कच्चे खिलाड़ी नहीं है। त्रिवेंद्र सिंह का राजनीतिक प्रबंधन इतना मजबूत है कि कोई भी विधायक उनके खिलाफ बगावत नहीं कर पाया। उन्होने प्रत्येक विधायक से लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं की समस्या सुनी उनका निवारण किया। जबकि इससे पूर्व भाजपा की सरकारों में विधायकों ने बगावत कर नेतृत्व परिवर्तन करवाया। इन बगावतों से जनरल खंडूडी से लेकर निशंक और नित्यानंद स्वामी अपनी कुर्सी गवां बैठै थे।


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