17 साल का सफर और उत्तराखंड …
उत्तराखण्ड उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण 9 नवम्बर 2000 को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात भारत गणराज्य के 27वें राज्य के रूप में किया गया था। सन 2000 से 2006 तक यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। जनवरी 2007 में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। 17 साल बीत जाने के बाद भी आज तक उत्तराखण्ड को स्थाई राजधानी नहीं मिल पाई है। देहरादून अस्थाई राजधानी के रुप में है। हालात आज भी जस के तस बने हुए। राज्य की बुनियादी शिक्षा की नींव आज भी कमजोर है। सभी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में अब तक पेयजल, शौचालय और बिजली की समुचित व्यवस्था नहीं हो सकी है ।
स्कूलों में संसाधनों की कमी के अलावा अध्यापकों के भी तमाम पद रिक्त पड़े हैं। राज्य का जन्म होने से लेकर अब तक प्रदेश में निर्वाचित चार सरकारें काबिज हो चुकी हैं। जिनमें दो बार कांग्रेस और दो बार बीजेपी की सरकार बनीं। शिक्षा का हाल जस का तस ही बना हुआ है। वहीं पलायन की अगर बात की जाए तो इन 17 सालों में उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों से खूब पलायन हुआ है। हालत ये है कि कई गाँव राज्य बनने के बाद बेचिराग हो गए हैं। तो कहीं 5-7 परिवार ही गांवों में रह रहे हैं। पलायन केवल लोगों ने ही नहीं किया बल्कि जिन प्रतिनिधियों के कंधों पर पलायन रोकने का दारोमदार था। वो भी पहाड़ों से पलायन कर मैदानों में जा बसे हैं। रोजगार,बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा का लगातार गिरता स्तर पलायन की बड़ी वजह बना है। उत्तराखण्ड की खूबसूरत वादियां, पहाड़ और झरने न केवल देवभूमि के सौन्दर्य को चार चांद लगाते हैं। बल्कि राज्यवासियों की किस्मत को भी बुलन्द करते हैं। दरअसल पर्यटन राज्य की आय का मुख्य स्त्रोत है। पर्यटन की प्रदेश में अपार सम्भावनाएं हैं लेकिन यह भी सच है कि राज्य स्थापना के 17 सालों में इस पर काम नगण्य ही रहा है ।
राज्य की चार निर्वाचित सरकारों में से किसी ने भी अब तक पर्यटन के क्षेत्र में भूमिका बांधने के सिवाय कुछ नहीं किया। राजनीतिक घोषणा पत्रों में तो पार्टियों ने पर्यटन को खास तवज्जो दी लेकिन इतने साल बाद भी राज्य में किसी नए पर्यटक स्थल को पूरी तरह से विकसित नहीं किया जा सका। सरकारों ने पर्यटन को लेकर कई योजनाएं चलाईं लेकिन कोई भी ऐसी नहीं रही जिसे सही मायनों में सफल कहा जा सकता हो। उत्तराखंड के 17 सालो के सफर जहा मैदान विकास की नयी इबारत लिख रहे वाही अनियोजित विकास और दूरदर्शिता की कमी ने उत्तराखंड के पहाड़ पर अभी तक विकास की कोई भी ठोस उम्मीद नहीं जगाई।